उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में सियासी हलचल अपने चरम पर है, और इस बार चुनाव से जुड़ी चर्चा का केंद्र अखिलेश यादव और उनकी पार्टी समाजवादी पार्टी (सपा) बन गई है। मीरापुर से कुंदरकी तक 10 पुलिसकर्मियों के सस्पेंड ने चुनावी राजनीति में एक नई दिशा दी है। सपा की शिकायत पर चुनाव आयोग ने यह कार्रवाई की है, जिससे अखिलेश यादव की रणनीति को मजबूती मिलती दिख रही है।
अखिलेश की रणनीति और दबाव
- वार रूम से चुनावी निगरानी: अखिलेश यादव ने लखनऊ में एक वार रूम स्थापित किया, जहां से उपचुनावों की निगरानी की गई। मतदान के दौरान मिली शिकायतों के सबूत, वीडियो और तस्वीरें चुनाव आयोग तक पहुंचाई गईं, जो अधिकारियों पर कार्रवाई का आधार बनीं।
- सोशल मीडिया और प्रेस कॉन्फ्रेंस का प्रभाव: अखिलेश यादव और सपा नेताओं ने सोशल मीडिया पर लगातार प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोला। इसके साथ ही अखिलेश ने चुनाव आयोग से बातचीत के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दबाव बढ़ाया।
- कार्यकर्ताओं की सक्रियता: अखिलेश की सक्रियता का असर जमीनी स्तर पर दिखा। सपा कार्यकर्ताओं ने कई जगह पुलिस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए, जिसका असर चुनावी माहौल पर पड़ा।
बीजेपी और विपक्ष की स्थिति
इस उपचुनाव में बीजेपी के लिए चुनौती बढ़ गई है। अखिलेश यादव ने प्रशासन को निशाना बनाकर चुनावी चर्चा का केंद्र सपा और बीजेपी को बना दिया है, जबकि बीएसपी और अन्य छोटे दल हाशिए पर चले गए हैं। कांग्रेस और ममता बनर्जी की पार्टी का सपा को समर्थन भी उसे अतिरिक्त बढ़त देता दिख रहा है।
23 नवंबर को नतीजों की प्रतीक्षा
सभी 9 सीटों के परिणाम 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अखिलेश यादव की रणनीति सपा को जीत दिलाने में सफल होती है या नहीं। वर्तमान हालात में सपा प्रशासनिक कार्रवाई को अपनी जीत की ओर एक कदम के रूप में प्रचारित कर रही है।