सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधित कानून को लेकर लगातार तीसरे दिन सुनवाई हुई, जिसमें वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपने-अपने पक्ष रखे। मुख्य न्यायाधीश (CJI) की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष बहस के दौरान सिब्बल ने कहा कि वक्फ इस्लाम का एक अहम स्तंभ है और यह समुदाय की धार्मिक और सामाजिक जिम्मेदारियों से जुड़ा हुआ है। उन्होंने इसे एक पवित्र परंपरा बताते हुए कहा कि वक्फ संपत्तियों का इस्तेमाल शिक्षा, स्वास्थ्य और जनकल्याण के लिए होता है, जो इस्लाम की बुनियादी सोच से जुड़ा है।
वहीं, तुषार मेहता ने इससे असहमति जताई और तर्क दिया कि वक्फ इस्लाम का अनिवार्य या आवश्यक हिस्सा नहीं है, इसलिए इसे संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत विशेष धार्मिक संरक्षण नहीं दिया जा सकता। उन्होंने कहा कि यह एक कानूनी ढांचा है जिसे राज्य ने समय-समय पर बदला है और इसे धार्मिक स्वतंत्रता के साथ जोड़ना गलत होगा।अब अदालत को तय करना है कि वक्फ केवल एक कानूनी व्यवस्था है या इस्लामिक आस्था का अनिवार्य हिस्सा। यह फैसला देशभर की वक्फ संपत्तियों और उनके संचालन पर बड़ा असर डाल सकता है।

















