चीन और नेपाल के साथ ही गढ़वाल की सीमा तक फैली अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ संसदीय सीट पर सियासी दलों को जीत की दहलीज तक पहुंचने के लिए जातीय समीकरण बैठाने होंगे। इस सीट पर सबसे बड़ा वोट बैंक राजपूतों का हैं।यही वजह रही है कि सियासी पार्टियों ने भी अधिकतर बार इस सीट पर इसी बिरादरी के लोगों को टिकट दिया और नतीजा भी उनके पक्ष में आया। पूरी संसदीय सीट पर 55 प्रतिशत राजपूत मतदाता हैं, इस बार भी प्रत्याशियों की नजर उन पर होगी।
अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर और चंपावत जनपद को मिलाकर बनी अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ संसदीय सीट में 14 विधानसभाएं है। सभी जिले ठाकुर बहुल हैं। ब्राह्मण और अनुसूचित जाति व जनजाति मतदाताओं का आंकड़ा लगभग बराबर है। जाति के अनुसार लगभग। 55 प्रतिशत ठाकुर, 23 प्रतिशत ब्राह्मण और 22 प्रतिशत अनुसूचित जाति व जनजाति मतदाता संसद उम्मीदवार की जीत-हार तय करते हैं। 1957 से अब तक हुए लोकसभा चुनाव में इस सीट पर सियासी दलों ने 55 प्रतिशत मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए अधिकतर बार राजपूत उम्मीदवारों को ही चुनावी मैदान में उतारा। कांग्रेस ने इस सीट पर सात बार तो भाजपा ने चार बार इस सीट पर राजपूत प्रत्याशी पर भरोसा जताया।कांग्रेस ने सिर्फ एक बार वर्ष 1960 में पंडित प्रत्याशी हरगोविंद पंत पर दांव लगाया और वह जीतने में भी कामयाब रहे। वर्ष 1977 में इस सीट पर पंडित चेहरे क रूप में लोक जनता दल के प्रत्याशी ने डॉ. मुरली मनोहर जोशी संसद पहुंचे। भाजपा ने 1991 में पंडित चेहरे के रूप में जीवन शर्मा को मैदान में उतारा और उन्होंने जीत दर्ज की। वर्ष 2009 में इस सीट को आरक्षित कर दिया गया। इस बार भी इस सीट पर भाजपा, कांग्रेस के साथ ही यूकेडी, बसपा, पिपुल्स पार्टी और एक निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में हैं और सभी जीत के दावे कर रहे हैं। हर बार की तरह की इस बार भी इस सीट पर जीत दर्ज करने के लिए प्रत्याशियों को जातीय समीकरण के आधार पर मतदाताओं को अपने पक्ष में करना होगा।7 प्रत्याशी हैं मैदान में
अजय टम्टा : भाजपा
प्रदीप टम्टा : कांग्रेस
नारायण : बसपा
अर्जुन देव : यूकेडी
किरन आर्या : उपपा
ज्योति प्रकाश टम्टा : बहुजन मुक्ति पार्टी
प्रमोद कुमार : उत्तराखंड पीपुल्स पार्टी
कुल मतदाता-1330627
पुरुष :- 650677
महिला :- 679943
सर्विस वोटर:- 29188
ट्रांसजेंडर -7
90 प्रतिशत मतदाता ग्रामीण
अल्मोड़ा संसदीय सीट पर 13,59,715 मतदाता हैं। इस सीट पर 90 प्रतिशत आबादी ग्रामीण है जबकि सिर्फ 10 प्रतिशत मतदाता ही शहरों में निवास कर रहे हैं। दुर्गम सीट पर राजनीतिक दलों को मतदाताओं तक पहुंचने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी। अंदाजा यह भी लगाया जा रहा है कि चारों जिलों के पांच हजार से अधिक गांवों में पहुंचना प्रत्याशियों के लिए नामुमकिन होगा और उनके समर्थक ही पोस्टर, बैनर के जरिए उनका चेहरा मतदाताओं को दिखाएंगे।
55% राजपूत
23%ब्राह्मण
22%एससी-एसटी वोटर