पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मथुरा को भगवान कृष्ण की जन्म नगरी माना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण विष्णु जी के अवतार हैं। मान्यता है कि कंस के अत्याचारों को खत्ग करने के लिए भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में जन्म लिया था।
भगवान कृष्ण की कहानियां व लीलाओं का जिक्र मथुरा की गली-गली में सुनने को मिलता है। मथुरा-वृंदावन में कदम रखते ही सभी भक्त कृष्ण भक्ति में रम जाते हैं। यहां के कोने-कोने में उनसे जुड़ी कहानियां प्रचलित है। मथुरा-वृंदावन में आपको ऐसे कई पौराणिक मंदिर देखने को गिलेंगे, जिनका विशेष गहत्व है। वृंदावन में स्थित बांके बिहारी मंदिर भी इनमें से एक है। यहां भगवान कृष्ण दर्शन के लिए हर दिन हजारों की तादाद में भक्त आते हैं।
मधुरा-वृंदावन में श्री कृष्ण के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। मान्यता है कि अगर आप मथुरा वृंदावन जा रहे हैं तो गिरिराज यानी गोवर्धन पर्वत के दर्शन जरूर करना चाहिए। इसके बिना यात्रा अधूरी मानी जाती है। यहां पर भी हर दिन हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि गिरिराज को घर लाने से सुख-समृद्धि बनी रहती है। पर क्या वास्तव में ऐसा करना चाहिए? आइए इसके बारे में विस्तार से जान लेते हैं।
क्या गिरिराज जी को घर लाना सही है ?
गर्ग संहिता में कई विद्वानों के अनुसार कभी भी गिरिराज जी को घर लेकर नहीं आना चाहिए। इन्हें वृंदावन का मुकुट माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार राधा रानी गिरिराज पर्वत के बिना नहीं रह सकती है। कई कथाओं से पता चलता है कि धरती पर जन्म लेने से पहले राधा रानी ने कृष्ण जी से कहा था कि, उन्हें धरती पर एक ऐसी जगह चाहिए, जहां अधिक शांति हो। इस वाक्य के बाद कृष्ण जी ने अपने हृदय की ओर देखा, जिसके बाद वहां से तेज पुंज निकला और फिर इसी से गोवर्धन पर्वत बना।इस पर्वत की सुंदरता हर किसी का गन गोह लेती है। कुछ रागय बीतने के बाद जब भगवान कृष्ण धरती लोक पर आने लगे, तो उन्होंने राधा रानी से साथ चलने के लिए कहा। उनकी बात का उत्तर देते हुए राधा रानी ने कहा कि वह वृंदावन यमुना और गोवर्धन के बिना कैसे रहेगी। इसके बाद ही श्री कृष्ण ने 84 फोस में फैले बृज मंडल को धरती पर भेजा और गोवर्धन ने शाल्मल द्वीप में द्रोणाचल गिरी के यहां जन्म लिया था। इसके साथ ही गिरिराज पर्व श्री कृष्ण को अति प्रिय है। इसलिए गिरिराज को कभी भी 84 कोसों के बाहर नहीं लेकर जाना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है, तो उसे बुरे परिणार्मो का सामना करना पड़ता है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये खबर लोक मान्यताओं पर आधारित है। इस खबर में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अगर उजाला उत्तरदायी नहीं है