हज यात्रियों पर बढ़ा आर्थिक बोझ: माशाएर सेवाओं के टेंडर में सबसे महंगी बोली लगाने वाली कंपनी को मिली मंजूरी

नई दिल्ली। आगामी हज 2026 के लिए माशाएर सेवाओं के चयन में इस बार भारतीय हज यात्रियों को अधिक खर्च उठाना पड़ सकता है। हज कमेटी ऑफ इंडिया और भारत के जेद्दाह स्थित वाणिज्य दूतावास (Consulate General of India, Jeddah) के खिलाफ दर्ज एक शिकायत में दावा किया गया है कि नई टेंडर प्रणाली के तहत **सबसे कम (L1) बोली के बजाय महंगी (L3) बोली लगाने वाली कंपनी को जानबूझकर चुना गया, जिससे यात्रियों पर लगभग ₹80 से ₹90 करोड़ तक का अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है।

सूत्रों के अनुसार, इस वर्ष टेंडर मूल्यांकन में क्वालिटी एंड कॉस्ट बेस्ड सिलेक्शन (QCBS) प्रणाली अपनाई गई, जिसमें कंपनियों के प्रेजेंटेशन” को भी अंकों में जोड़ा गया। इसी चरण में महंगी बोली लगाने वाली कंपनी मि./स. एथ्रा अल खैर को 30 में से 29 अंक दिए गए, जबकि सबसे कम दर की पेशकश करने वाली कंपनी को केवल 21 अंक मिले। नतीजतन, कुल अंकों में मात्र 1.33 अंकों के अंतर से सबसे महंगी बोली लगाने वाली कंपनी को ठेका दे दिया गया।

सरकारी निविदा प्रक्रियाओं से परिचित विशेषज्ञों का कहना है कि इस परिवर्तन से हज कमेटी ऑफ इंडिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े हो सकते हैं, क्योंकि परंपरागत रूप से हज सेवाओं के चयन में केवल सबसे कम दर (L1) वाली कंपनी को ही चुना जाता था।
इन सबके बीच, हज कमेटी ऑफ इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO)  सी., जो एक आईएएस अधिकारी हैं, उनके साथ उप-सीईओ श्री नियाज़ अहमद और जेद्दाह में भारतीय वाणिज्य दूतावास के कौंसल (हज) मुहम्मद अब्दुल जलील की भूमिका भी सवालों के घेरे में आ गई है।

हालांकि हज कमेटी की ओर से अब तक इस संबंध में कोई औपचारिक स्पष्टीकरण जारी नहीं किया गया है, लेकिन यह निर्णय सीधे तौर पर यात्रियों की जेब पर असर डाल सकता है। अनुमान है कि लगभग 1.22 लाख भारतीय हाजियों को प्रति व्यक्ति करीब ₹5,000 से ₹6,000 तक अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ सकता है।विश्लेषकों का मानना है कि हज जैसी धार्मिक यात्रा में प्रत्येक रुपये की पारदर्शिता और जवाबदेही अत्यंत आवश्यक है । ताकि आम यात्रियों का विश्वास और श्रद्धा दोनों कायम रह सकें।

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