शासन करना भारतीयों के खून में नहीं:मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को कहा कि भारत के ब्रिटिश शासकों ने यह संदेश फैलाने के लिए देश के इतिहास को विकृत किया कि स्थानीय आबादी खुद पर शासन करने के लिए अयोग्य है. भागवत ने कहा कि 1857 में, भारत के ब्रिटिश शासकों को एहसास हुआ कि जातियों, संप्रदायों, भाषाओं, भौगोलिक असमानताओं और भारतीयों के आपस में लड़ने के बावजूद तब तक एकजुट रहेंगे जब तक कि वो विदेशी आक्रमणकारियों को देश से बाहर नहीं निकाल देते.वह नागपुर में सोमलवार एजुकेशन सोसाइटी के 70वें स्थापना दिवस के अवसर पर 21वीं सदी में शिक्षकों की भूमिका पर एक कार्यक्रम में बोल रहे थे. आरएसएस प्रमुख ने कहा कि ब्रिटिश शासकों ने कुछ ऐसा करने का निर्णय लिया जिससे भारतीयों की यह विशेषता खत्म हो जाए और यह सुनिश्चित हो जाए कि ब्रिटिश शासन हमेशा के लिए बना रहे. उनका उद्देश्य भारतीयों के मन से उनके इतिहास, पूर्वजों और गौरवपूर्ण विरासत को भुला देना था. इस उद्देश्य के लिए, अंग्रेजों ने तथ्यों की आड़ में हमारे दिमाग में कई झूठ डाल दिए.

भारत पर आर्यों ने किया हमला

भागवत ने कहा कि सबसे बड़ा झूठ यह था कि भारत में ज़्यादातर लोग बाहर से आए थे. ऐसा ही एक झूठ यह है कि भारत पर आर्यों ने आक्रमण किया था, जिन्होंने द्रविड़ों से लड़ाई की थी. उन्होंने प्रचार किया कि खुद शासन करना भारतीयों के खून में नहीं है और यहां के लोग धर्मशालाओं में रहने वालों की तरह रहते हैं.

जीवन बदल सकते हैं शिक्षक:आरएसएस प्रमुख ने कहा कि 21वीं सदी में एआई के युग में भी शिक्षक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे. उन्होंने कहा कि वर्तमान पीढ़ी टेक्नोलॉजी के कारण बहुत सारे ज्ञान से अवगत है, लेकिन शिक्षक जीवन बदल सकते हैं. मोहन भागवत ने कहा कि देखने और अवलोकन का मतलब सीखना है. हम पढ़ने और सुनने के माध्यम से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

शिक्षा की भूमिका महत्वपूर्ण:उन्होंने कहा कि शिक्षकों में जीवन बदलने की शक्ति है. टेक्नोलॉजी आती है और जाती है. बुद्धि के आर्टिफिशियल होने के साथ, शिक्षकों और शिक्षा की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है. आरएसएस प्रमुख ने महात्मा गांधी के इस कथन को भी याद किया कि नैतिकता के बिना विज्ञान पाप है. उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी महत्वपूर्ण है और इसकी प्रगति से मनुष्यों को तेजी से और सटीक काम करने में मदद मिलेगी, लेकिन इसका प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाना चाहिए.

ज्ञान की आड़ में झूठ फैलाया:उन्होंने कहा कि जब हम पढ़ाते हैं तो हम सीखते भी हैं. हर छात्र अलग है. संघ प्रमुख ने कहा कि यदि जानकारी की आवश्यकता है तो गूगल है, लेकिन शिक्षण के लिए शिक्षक आवश्यक हैं. भागवत ने कहा कि कभी-कभी ज्ञान की आड़ में झूठ फैलाया जाता है और इतिहास की आड़ में विकृत तथ्य पेश किए जाते हैं. उन्होंने कहा कि ज्ञान की पड़ताल करनी पड़ती है और फिर उसे आत्मसात करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि किताबों की भूमिका लगभग खत्म हो गई है. गूगल के पास पूरी दुनिया का ज्ञान है. आज के एआई के युग में शिक्षकों की भूमिका पर प्रश्नचिह्न है.

शिक्षा का उद्देश्य इंसान बनाना:मोहन भागवत ने कहा कि ज्ञान का उपयोग कैसे करना है यह जानने के लिए विवेक की आवश्यकता है. 21वीं सदी में शिक्षकों की यही भूमिका होगी. आरएसएस प्रमुख ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य इंसान बनाना है. खजूर का पेड़ बहुत लंबा होता है लेकिन अगर यह छाया नहीं देता तो इसका क्या फायदा. बड़ा व्यक्ति वह है जो दूसरों के लिए उपयोगी हो. भागवत ने कहा कि 1857 के बाद भारत में शिक्षा संस्थानों ने अहम भूमिका निभाई. उन्होंने कहा कि उस समय शिक्षक छात्रों में आत्म-गौरव और आत्मविश्वास पैदा करते थे.

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