गाजियाबाद| दीपावली भारत का एक ऐसा पवित्र पर्व है, जिसका सम्बन्ध भारतीय संस्कृति की सभी परम्पराओं से है। भारतीय संस्कृति के प्राचीन जैन धर्म में इस पर्व को मनाने के अपने मौलिक कारण हैंl दिपावली के दिन दुनिया भर के सभी जैन मंदिरों में 24वे तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के मोक्ष उपलक्ष में निर्वाण लाडू चढ़ाया जाता है। जैनियों का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत अहिंसा है; इसलिए, वे दिवाली के दौरान पटाखों से बचते हैं क्योंकि वे जीवों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। दिवाली तपस्या, सादगी, शांति, दान, परोपकार और पर्यावरण चेतना के माहौल में मनाई जाती है। जैन मंदिर, घर, कार्यालय और दुकानें रोशनी और दीयों से सजाए जाते हैं। रोशनी ज्ञान को प्राप्त और अज्ञानता को दूर करने का प्रतीक है। इस विशेष दिन पर मंदिरों और घरों में, जैन भक्त धार्मिक ग्रंथों से भजन गाते हैं और मंत्रों का जाप करते हैंl
इतिहासकारों की मानें तो जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी को मोक्ष मिला था। साथ ही इस दिन चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य गौतम गणधर को भी ज्ञान प्राप्त हुआ था। भगवान महावीर का जन्म 599 वर्ष पूर्व वैशाली गणराज्य के क्षत्रिय परिवार हुआ था। इनका जन्म तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण के बाद हुआ था। महज 30 वर्ष की आयु में महावीर ने गृह त्याग कर सन्यास धारण कर लिया था।
इसके बाद 12 वर्षों तक कठिन तपस्या के पश्चात उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। केवल ज्ञान उस ज्ञान को कहा जाता है, जिसमें जैन धर्म के अनुयायियों को विशुद्धतम ज्ञान प्राप्त होता है। इसमें चार तरह के कर्मों पर विजय पाना होता है। इनमें मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनवरण तथा अंतराय के कर्मों पर जीतने के बाद ज्ञान होता है। 527 ईशा पूर्व में कार्तिक महीने की अमावस्या के दिन बिहार के नालंदा जिले स्थित पावापुरी में मोक्ष प्राप्त हुआ था। इसके लिए जैन धर्म के अनुयायी निर्वाण दिवस के रूप में दिवाली मनाते हैं।

















