संभल में शाही जामा मस्जिद को लेकर शुरू हुए विवाद और फिर हिंसा की घटना के बाद हर रोज नए नए खुलासे हो रहे हैं. शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए शाही जामा मस्जिद के सामने पुलिस चौकी का निर्माण किया जा रहा है, जिसको लेकर दावा किया जा रहा है कि यह जमीन वक्फ की है. इसको लेकर जांच में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. वक्फ की जमीन के दावों के दस्तावेजों की जांच के बाद खुलासा हुआ है कि 50 रुपये के स्टांप पर साल 1929 में पूरे संभल से ज्यादा क्षेत्रफल की जमीन को वक्फ कर दी गई थी. जिला प्रशासन को सौंपे गए वक्फ दस्तावेजों के मुताबिक, 23 अगस्त 1929 को अब्दुल समद नाम के व्यक्ति ने संभल की कुल 20 संपत्तियों को वक्फ किया था. यह दस्तावेज संभल प्रशासन को वक्फ के रूप में दिया गया था.
कोतवाली वक्फ की जमीन पर
कथित वक्फनामे की जांच में दावा किया गया कि संभल की 4 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा जमीन को साल 1929 में वक्फ किया गया था. जबकि संभल की पूरी आबादी ही पौने 4 वर्ग किलोमीटर में बसी है. जांच में यह भी पता चला है कि जो दस्तावेज संभल प्रशासन को दिए गए थे, उनमें 1905 में बनी संभल की कोतवाली को भी वक्फ की जमीन पर दिखाया गया था.दस्तावेजों के मुताबिक, संभल के कोट मोहल्ले से लेकर सलीमपुर तक की 4 बीघा जमीन को 1929 में कथित रूप से वक्फ किया गया था. संभल प्रशासन की जांच में सामने आया है कि इस इलाके में सैकड़ों लोगों के मकान हैं, साथ ही धार्मिक स्थल भी मौजूद हैं. इसके अलावा प्रशासन को सौंपे दस्तावेजों में शयरों सरायं से लेकर आलम सरायं की 48 बीघा जमीन भी वक्फ संपत्ति के रुप में दिखाई गई है.
रजिस्टर नहीं है वक्फ संपत्ति
संभल जिला अधिकारी डॉ राजेंद्र पैंसिया के मुताबिक, प्रशासन को दिए गए दस्तावेजों की जांच में 4 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल से ज्यादा जमीन वक्फ की दिखाई गई थी. इसमें संभल की कोतवाली से लेकर डाकघर और धार्मिक स्थल तक शामिल हैं. हालांकि जांच के दौरान ये भी पता चला है कि ये वक्फनामा रजिस्टर्ड नहीं है.