मुंबई। महाराष्ट्र में भाषा को लेकर सियासी घमासान लगातार गहराता जा रहा है। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने विवादित बयान देते हुए कहा कि अगर किसी में हिम्मत है तो हिंदी भाषियों पर नहीं, उर्दू भाषियों पर हमला कर दिखाएं। उन्होंने ठाकरे बंधुओं पर हिंदू समाज को बांटने का आरोप भी लगाया।
वहीं भोजपुरी अभिनेता और भाजपा सांसद दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ ने महाराष्ट्र के नेताओं को खुली चुनौती देते हुए कहा, “अगर हिम्मत है तो मुझे भोजपुरी बोलने के कारण महाराष्ट्र से बाहर निकालकर दिखाओ।” उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर बहस और तेज हो गई है।
उधर, महाराष्ट्र सरकार द्वारा कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के फैसले को वापस लेने के बाद उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने इसे अपनी वैचारिक जीत बताते हुए जश्न मनाया है। पार्टी ने कहा कि महाराष्ट्र की अस्मिता और मराठी भाषा के सम्मान के लिए यह कदम जरूरी था।
इस पूरे विवाद पर अभिनेता राजकुमार राव ने भी सोशल मीडिया के जरिए संवेदनशीलता और सहिष्णुता के मापदंडों पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने लिखा, “भाषा जोड़ने का माध्यम है, तोड़ने का नहीं।”
आध्यात्मिक विचारक स्वामी चैतन्य कीर्ति ने भी अपने बयान में कहा कि, “भाषा केवल संवाद का साधन है, इसे राजनीति का हथियार न बनाएं।”
जैसे-जैसे बयानबाज़ी बढ़ रही है, भाषा का मुद्दा अब सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर एक भावनात्मक बहस में तब्दील होता जा रहा है।