कोलकाता में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में थोड़े में ही हिंदुत्व को बता दिया गया है. हिंदू शब्द उसमें नहीं है, लेकिन सभी उपासनाओं को स्वतंत्रता है.न्याय है, स्वतंत्रता है, समानता है, ये सब कहां से आया है? उन्होंने कहा कि बाबा साहेब का कहना था कि यह मैंने फ्रांस से नहीं लिया है, बल्कि गीता सागर बुद्ध से लिया है. संसद में अपने भाषण में उन्होंने कहा था कि बंधु भाव यही धर्म है.
भागवत ने पूछा कि धर्म पर आधारित संविधान किसकी विशेषता है? यह हिंदू राष्ट्र की विशेषता है. हिंदू शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया, लेकिन स्वभाव से सभी वही थे, इसकी छाया उनके निर्माण में दिखाई देती है. उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू राष्ट्र बहुत पुराना है. सूर्य पूर्व में उगता है, लेकिन कब से उगता है, यह पता नहीं. अब इसके लिए भी संविधान की मंजूरी चाहिए क्या? हिंदुस्तान हिंदू राष्ट्र है. भारत को मातृभूमि मानने वाला, भारतीय संस्कृति में श्रद्धा रखने वाला और भारतीय पूर्वजों का गौरव मन में रखने वाला एक भी व्यक्ति जब तक हिंदुस्तान की धरती पर जीवित है, तब तक भारत हिंदू राष्ट्र रहेगा.
उन्होंने कहा कि अगर संसद के मन में आया कि हिंदू राष्ट्र शब्द जोड़ना चाहिए तो जोड़ेंगे, और अगर नहीं डालेंगे तो भी ठीक है. उस शब्द से कोई मतलब नहीं है. हम हिंदू हैं और राष्ट्र हमारा हिंदू राष्ट्र है. यह सत्य है. कहीं लिखा हो या न लिखा हो, लेकिन जो है, वह है. यह बदलेगा नहीं.
संघ के लक्ष्य पर बात करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि समाज को संगठित करना और हिंदू समाज के अंदर संघ को बनाना ही हमारा लक्ष्य है. उन्होंने कहा कि संघ के अंदर हिंदू समाज बनाना हमारा लक्ष्य नहीं है. अब यह पश्चिम बंगाल और देश में कब होगा, यह तो भविष्य में ही पता चलेगा. इसे लेकर मैं कुछ नहीं कह सकता.
उन्होंने कहा कि हिंदू समाज को संगठित करना तो पक्का है. अगर यह कल सुबह तक हो जाए तो कल सुबह ही करेंगे, और नहीं हुआ तो तब तक करेंगे, जब तक यह काम पूरा नहीं हो जाता. पूरा होने तक हमें रुकना नहीं है. बाधाएं आएंगी, लेकिन हम इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए संघ को चला रहे हैं और संघ को आगे बढ़ाने के लिए ही हमारा जन्म हुआ है. मरते दम तक नहीं हुआ तो अगले जन्म में फिर से यही कार्य करेंगे.

















