मुज़फ्फरनगर की ऐतिहासिक जामा मस्जिद हौज़वाली स्थित शाह वलीउल्लाह इस्लामिक एकेडमी में 1 मुहर्रमुल हराम को इस्लामी नए साल के मौके पर “हिजरी सन् के स्वागत समारोह” का आयोजन सम्मानपूर्वक किया गया। यह कार्यक्रम नक़ूश–ए–अमल सोशल मीडिया ग्रुप द्वारा आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान क़ारी मोहम्मद ख़ालिद बशीर क़ासमी ने की।क़ारी मोहम्मद ख़ालिद बशीर ने संबोधित करते हुए हिजरी कैलेंडर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को उजागर किया। उन्होंने बताया कि यह सन् पैगंबर हज़रत मोहम्मद से जुड़ा है, जो इस्लाम के विस्तार और सफलता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम था। हज़रत उमर फारूक़ रज़ि० ने इस घटना को आधार बनाकर अपने शासनकाल में हिजरी सन् की शुरुआत की थी।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हिजरी सन् चंद्र आधारित होता है, जिस पर रमज़ान, ईद, हज, शब–ए–बरात, शब–ए–क़द्र, यौम–ए–आशूरा जैसे इस्लामी अरकान आधारित हैं। नई पीढ़ी में इस्लामी इतिहास और पहचान की समझ विकसित करने के लिए इस सन् को याद रखना और अपनाना ज़रूरी है।कार्यक्रम का आरंभ मशहूर नातख्वां मास्टर मोहम्मद दानिश क़ुरैशी की भावनात्मक नात से हुआ, जबकि संचालन वरिष्ठ अधिवक्ता महबूब आलम एडवोकेट ने किया। समारोह में मौलाना हकीम इशारत अली क़ासमी देवबंदी, क़ारी शौकत अली क़ासमी, क़ारी ज़रीफ अहमद अलाई, ख़्वाजा मोहम्मद अख्तर ख़ान, डॉ. आस मोहम्मद अमीन क़ुरैशी जैसे विद्वानों ने भाग लिया और हिजरी सन् के महत्व पर प्रकाश डाला।साथ ही पत्रकारिता, शिक्षण और समाजसेवा से जुड़े सुहैल अहमद ख़ान, अब्दुल्ला क़ुरैशी, मास्टर फारूक, अखलद बशीर और हुसैन अहमद ने भी इस्लामी नववर्ष की शुभकामनाएँ दीं और हिजरी कैलेंडर के प्रकाशन को समय की आवश्यकता बताया।समारोह के अंत में हिजरी क़मरी कैलेंडर 1447 का विमोचन किया गया और उपस्थित जनों के लिए विशेष दावत का आयोजन किया गया, जिससे यह कार्यक्रम एकता, जागरूकता और इस्लामी संस्कृति के प्रचार–प्रसार का प्रेरणास्रोत बन गया।