वंदे मातरम की रचना को 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर संसद के शीतकालीन सत्र में एक विशेष चर्चा आयोजित की जाएगी। यह चर्चा देश की सांस्कृतिक विरासत, आज़ादी के आंदोलन और राष्ट्र निर्माण में वंदे मातरम की भूमिका को ध्यान में रखते हुए बेहद महत्व रखती है। वंदे मातरम न सिर्फ एक गीत है, बल्कि भारत की स्वतंत्रता संग्राम की भावनाओं और देशभक्ति का सशक्त प्रतीक माना जाता है।
विशेष चर्चा की शुरुआत लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की जाएगी। वे वंदे मातरम के इतिहास, उसके महत्व और वर्तमान भारत में इसकी प्रासंगिकता पर अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री अपने संबोधन में इस गीत की प्रेरक यात्रा और राष्ट्रवादी चेतना जगाने में इसकी भूमिका को विशेष रूप से रेखांकित करेंगे।
राज्यसभा में इस चर्चा की शुरुआत गृह मंत्री अमित शाह कर सकते हैं। वे वंदे मातरम के राजनीतिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आयामों पर बात करेंगे। यह भी संभव है कि वे आज़ादी के आंदोलन के दौरान इस गीत के महत्व और देश को एकजुट करने में इसकी भूमिका पर प्रकाश डालें।
इस विशेष चर्चा में कांग्रेस के आठ नेता भी भाग लेंगे। उम्मीद है कि विपक्ष वंदे मातरम के योगदान को स्वीकार करते हुए इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि व वर्तमान संदर्भों पर अपने विचार प्रस्तुत करेगा। संसद में यह चर्चा सदस्यों को देश की सांस्कृतिक जड़ों और आज़ादी के इतिहास को नए सिरे से समझने का अवसर प्रदान करेगी।
वंदे मातरम की रचना बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 1875 में की थी। बाद में इसे उनकी प्रसिद्ध कृति ‘आनंदमठ’ में शामिल किया गया। आज़ादी के आंदोलन के दौरान वंदे मातरम क्रांतिकारियों का ऊर्जा स्रोत बन गया। यह गीत ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट होने और संघर्ष की प्रेरणा का प्रतीक रहा है। महात्मा गांधी, रवीन्द्रनाथ टैगोर, अरविंदो और अनेक राष्ट्रीय नेताओं ने वंदे मातरम के महत्व को स्वीकार किया था।
संसद में आयोजित यह विशेष चर्चा न केवल इसके 150 वर्षों के इतिहास की याद दिलाएगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए इसे संरक्षित करने का संदेश भी देगी। इस अवसर पर सरकार वंदे मातरम के संरक्षण और प्रसार से जुड़े नए प्रस्ताव भी रख सकती है।
यह चर्चा देशभर में सांस्कृतिक और राष्ट्रभक्ति की भावना को और मजबूत करेगी। वंदे मातरम न सिर्फ अतीत का गौरव है, बल्कि वर्तमान और भविष्य के भारत की एक साझा पहचान भी है।

















