मिडिल ईस्ट में सऊदी–यूएई की ‘साइलेंट वॉर’यमन में तेल और भू-रणनीति पर नई शह-मात

मध्य पूर्व में सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बीच शक्ति संतुलन की खींचतान अब एक नए मोड़ पर पहुंच गई है। सूडान गृहयुद्ध में अमेरिका की एंट्री कराकर सऊदी ने हाल ही में यूएई पर दबाव बढ़ाया था, लेकिन अब यूएई ने पड़ोसी यमन में सऊदी के प्रभाव को चुनौती देते हुए हालात पूरी तरह बदल दिए हैं। यह मुकाबला खुला नहीं है, लेकिन इसके हर कदम के पीछे बड़ी भू-राजनीतिक और आर्थिक रणनीतियां छिपी हैं।

बीबीसी अरबी और स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, कभी सऊदी और यूएई मिलकर यमन में हूती विद्रोहियों से लड़ते थे, लेकिन अब यूएई दक्षिण संक्रमणकालीन परिषद (STC) को आगे कर यमन में अपनी पकड़ बढ़ाने में लगा है। एसटीसी की सैन्य प्रगति ने सऊदी की चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि अगर STC यमन में व्यापक नियंत्रण हासिल कर लेता है तो लाल सागर (Red Sea) के किनारे पर यूएई का सीधा प्रभाव स्थापित हो जाएगा। यह क्षेत्र अब तक सऊदी की रणनीतिक पहुंच का सबसे बड़ा जरिया माना जाता रहा है।

हद्रामौत जैसे तेल-समृद्ध क्षेत्र पर कब्जे के बाद यूएई समर्थित STC के लड़ाके अब यमन की राजधानी सना की ओर बढ़ रहे हैं, जिस पर वर्तमान में हूती विद्रोहियों का नियंत्रण है। यमन मॉनिटर की रिपोर्ट बताती है कि देश के कुल तेल भंडार का बड़ा हिस्सा—करीब एक-तिहाई—हद्रामौत में मौजूद है। इसे ‘यमन का तेल कुआं’ भी कहा जाता है। इसी कारण STC की नजर इस क्षेत्र पर लंबे समय से थी।

STC को दो वजहों से भरोसा है कि वह हूती पर बढ़त ले सकता है। पहला, इज़राइल और अमेरिका ने हाल के महीनों में हूती लड़ाकों को अपने रडार पर ले रखा है। इजराइली हमलों के डर से हूती के कई बड़े कमांडर भूमिगत रह रहे हैं। लेकिन यदि STC के हमले के चलते हूती लड़ाकों को खुले मैदान में उतरना पड़ा तो इजराइल की एयरस्ट्राइक उनकी बड़ी क्षति कर सकती है। दूसरी वजह यह है कि इजराइल के हमलों में हूती के कई प्रमुख नेता मारे गए हैं और हथियारों की सप्लाई भी कम हो गई है। ईरान के साथ उनके संबंध भी पहले जैसे मजबूत नहीं बचे हैं। इन परिस्थितियों में STC को जीत की उम्मीद और मजबूत हो गई है।

सवाल यह है कि इससे सऊदी अरब सबसे ज्यादा क्यों परेशान है? दरअसल, सऊदी लंबे समय से यमन को अपनी रणनीतिक ‘दीवार’ की तरह इस्तेमाल करता रहा है। यदि यूएई समर्थित STC यमन में मजबूत हो जाता है तो यूएई वहां के तेल, खनिज और अन्य संसाधनों पर सीधा नियंत्रण हासिल कर सकता है। माना जा रहा है कि यूएई हथियारों और सैन्य मदद के बदले यमन से तेल और खनिज पदार्थ ले सकता है—जैसा कि वह सूडान के कई इलाकों में चुपचाप करता रहा है।सबसे बड़ा खतरा सऊदी के लिए लाल सागर का है। यमन की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि जो इस क्षेत्र पर नियंत्रण रखता है, वह लाल सागर के व्यापारिक मार्गों को प्रभावित कर सकता है। अब तक यहां सऊदी का प्रभाव था, लेकिन यमन में यूएई की बढ़त उसके लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकती है।यमन में यह नई चालबाज़ी मध्य पूर्व की राजनीति में आने वाले बड़े बदलावों की संकेत दे रही है—जहां सऊदी और यूएई एक साथ दिखते जरूर हैं, पर अंदर ही अंदर अपने-अपने साम्राज्य को मजबूत करने की जंग लड़ रहे हैं।

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