मुजफ्फरनगर। कृषि निदेशक प्रमोद सिरोही ने जिले के सभी किसानों से अपील की है कि पराली जलाने की परंपरा को तत्काल बंद किया जाए और वैकल्पिक उपाय अपनाकर खेतों का प्रबंधन किया जाए। उन्होंने बताया कि फसल अवशेष जलाने से न केवल प्रदूषण बढ़ता है बल्कि इससे मिट्टी की उर्वरक क्षमता भी प्रभावित होती है। सरकार की ओर से इस समस्या के समाधान हेतु स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, जिनका पालन करना किसानों के लिए अनिवार्य होगा।
कृषि निदेशक ने कहा कि कम्बाईन हार्वेस्टर के साथ सुपर एसएमएस का प्रयोग किया जाए ताकि कटाई के समय ही पराली का प्रबंधन हो सके। यदि सुपर एसएमएस उपलब्ध न हो तो अन्य यंत्र जैसे स्ट्रा रीपर, स्ट्रा रेक, बेलर, मल्चर, पैडी स्ट्रा चॉपर, श्रब मास्टर, रोटरी स्लेशर व रिवर्सेबल एमबी प्लाऊ का प्रयोग किया जा सकता है। इन यंत्रों की मदद से खेत में फसल अवशेष को बंडल बनाकर अन्य उपयोग में लिया जा सकता है या फिर मिट्टी में मिलाकर खाद में परिवर्तित किया जा सकता है।
साफ निर्देश दिए गए हैं कि कम्बाईन हार्वेस्टर के संचालक की जिम्मेदारी होगी कि वह कटाई के समय इन यंत्रों का प्रयोग सुनिश्चित करे। यदि कोई हार्वेस्टर मालिक इन निर्देशों की अनदेखी करता है और पराली का उचित प्रबंधन नहीं करता, तो उसके खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।
उन्होंने यह भी बताया कि यदि किसान बिना पराली हटाए रबी की बुवाई के समय जीरो टिल सीड कम फर्टीलाइजर ड्रिल, हैप्पी सीडर, सुपर सीडर या डीकम्पोजर का प्रयोग करना चाहते हैं, तो उन्हें अनिवार्य रूप से उपसम्भागीय कृषि प्रसार अधिकारी को घोषणा पत्र देना होगा। इसमें यह स्पष्ट करना होगा कि किसान पराली नहीं जलाएगा और दिए गए यंत्रों या डीकम्पोजर से ही उसका प्रबंधन करेगा।
यदि किसानों द्वारा इस शिथिलता का दुरुपयोग करते हुए पराली जलाने की घटनाएं प्रकाश में आती हैं, तो जिलाधिकारी को अधिकार होगा कि वह सुपर एसएमएस को कम्बाईन हार्वेस्टर पर अनिवार्य रूप से लगाने की व्यवस्था फिर से लागू कर सकें।
महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत सरकार पराली जलाने की घटनाओं की मॉनीटरिंग सैटेलाइट से करती है। यदि किसी खेत में पराली जलती है तो उसकी रिपोर्ट सीधे जिला प्रशासन को मिल जाती है। इसके बाद अधिकारियों की टीम मौके पर पहुंचकर जुर्माना लगाएगी। इसमें 2 एकड़ से कम खेत में पराली जलाने पर 5000 रुपये, 2 से 5 एकड़ के लिए 10000 रुपये और 5 एकड़ से अधिक क्षेत्र के लिए 30000 रुपये तक का अर्थदंड निर्धारित है। इसके अतिरिक्त अन्य विधिक कार्रवाई भी की जाएगी।
अंत में कृषि निदेशक ने किसानों से भावुक अपील की कि वे पराली न जलाएं, बल्कि इसे मिट्टी में मिलाकर कार्बनिक खाद में परिवर्तित करें या फिर गौशालाओं और गऊ सेवकों को दान करें। उन्होंने कहा कि पराली जलाना केवल पर्यावरण के लिए ही नहीं बल्कि किसान की अपनी जमीन की सेहत के लिए भी हानिकारक है। पराली को सही ढंग से प्रबंधित करने से मिट्टी में कार्बन और पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ती है, जिससे फसल की पैदावार बेहतर होती है। इसलिए सभी किसान भाई प्रदूषण रोकने और अपनी मृदा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए सरकार द्वारा सुझाए गए उपायों को गंभीरता से अपनाएं।

















