पश्चिम बंगाल की राजनीति में इन दिनों बड़ी उथल-पुथल मची हुई है। तृणमूल कांग्रेस के निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी टीएमसी को लेकर कड़ा बयान दिया है। पार्टी से निकाले जाने के बाद कबीर ने दावा किया है कि टीएमसी का मुस्लिम वोट बैंक अब पूरी तरह खत्म हो गया है और यह स्थिति ममता बनर्जी के लिए आगामी चुनाव में गंभीर चुनौती बन सकती है।हुमायूं कबीर ने आरोप लगाया कि टीएमसी पिछले कई वर्षों से मुस्लिम समुदाय को केवल वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती आई है, लेकिन अब समुदाय का भरोसा पार्टी से उठ चुका है। उनका कहना है कि टीएमसी नेतृत्व ने मुस्लिम समाज से जुड़े वास्तविक मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया, जिससे धीरे-धीरे असंतोष बढ़ता गया। कबीर ने कहा कि आने वाले चुनावों में इसका बड़ा राजनीतिक असर देखने को मिलेगा और टीएमसी के लिए सत्ता में वापसी करना मुश्किल हो जाएगा।
कबीर ने यह भी घोषणा की है कि वह 22 दिसंबर को अपनी नई राजनीतिक पार्टी की शुरुआत करेंगे। उन्होंने स्पष्ट संकेत दिया कि वे अपनी नई पार्टी को प्रदेश में उभरती राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित करेंगे। इसी के साथ उन्होंने यह भी बताया कि वे AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के साथ गठबंधन करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। उनका दावा है कि यह गठबंधन राज्य के मुस्लिम और दलित वर्ग को एक मजबूत विकल्प प्रदान करेगा।
कबीर का यह बयान ऐसे समय आया है जब पश्चिम बंगाल में टीएमसी पहले से ही विपक्ष के हमलों, आंतरिक कलह और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई है। ऐसे में मुस्लिम वोट बैंक पर संकट की बात सामने आना पार्टी के लिए चिंता का विषय हो सकता है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि मुस्लिम मतदाता बड़े पैमाने पर टीएमसी से दूर होते हैं, तो पार्टी को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है, क्योंकि राज्य की लगभग 30 प्रतिशत आबादी मुस्लिम समुदाय की है।
कबीर ने यह भी आरोप लगाया कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की कमी है और जमीनी कार्यकर्ताओं की आवाज सुनी ही नहीं जाती। उनके मुताबिक इसी वजह से कई नेता और कार्यकर्ता असंतुष्ट हैं। उन्होंने कहा कि उनकी नई पार्टी उन लोगों के लिए एक मजबूत मंच बनेगी जो बदलाव चाहते हैं।
ममता बनर्जी या टीएमसी नेतृत्व की ओर से फिलहाल कबीर के इन आरोपों पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन राजनीतिक हलकों में इस बयान ने हलचल जरूर मचा दी है। आगामी महीनों में पश्चिम बंगाल की राजनीति किस दिशा में जाती है, यह देखना दिलचस्प होगा।

















