40 साल में सबसे बड़ी तबाही! नॉर्थ इंडिया में क्यों कहर बरपा रहीं हिमालय से निकली नदियां?

उत्तर भारत के कई इलाकों हुई भारी बारिश और क्लाउडबर्स्ट की घटनाओं ने हिमाचल प्रदेश, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में तबाही मचाई. इसकी चपेट में पाकिस्तान का पंजाब और सिंध प्रांत भी है.भारी बारिश से हुई तबाही की तस्वीरों और वीडियो से सोशल मीडिया पटा पड़ा है.उत्तर भारत के ज्यादातर राज्य लगातार भारी बारिश और फ्लैश फ्लड से हो गए हैं. इस प्राकृतिक आपदा ने पहाड़ों को कीचड़ भरी नदियों और मैदान को विशाल समुद्रों में बदल दिए हैं. वहीं, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने अगस्त के अंत में 72 घंटों में 300-350 मिमी बारिश दर्ज की जो सामान्य मौसमी औसत से लगभग तीन गुना थी. अधिकारियों और मौसम वैज्ञानिकों ने इसे पिछले चार दशकों में उत्तर भारत की सबसे भयावह बाढ़ बताया है.

इस बाढ़ ने साल 1998 के पंजाब बाढ़ की यादों को ताजा कर दिया है, जब सिंधु जल सिस्टम की नदियों ने खेतो और कस्बों को डुबो दिया था, लेकिन इस बार जलवायु परिवर्तन, अनियोजित शहरीकरण और जर्जर बुनियादी ढांचे ने इस प्रकृति प्रकोप को बढ़ावा दिया है. इस बार भी सिंधु नदी प्रणाली (जिसमें सिंधु, रावी, सतलुज, झेलम, चिनाब और ब्यास शामिल हैं) उफान पर हैं.

कुल्लू-मंडी और किन्नौर में भारी तबाही

इसका सबसे पहले दंश हिमाचल प्रदेश ने झेला, जहां लगातार बादल फटने के कारण कुल्लू, मंडी और किन्नौर जिलों की खड़ी ढलानें ढह गईं और चट्टानें-मलबा नदियों में बह गया. इसके अलावा ब्यास और सतलज नदियों ने कई जगहों पर तटबंध तोड़ दिए. बाढ़ में 250 से ज्यादा सड़कें बह गई, जिनमें चंडीगढ़-मनाली राजमार्ग का हिस्सा भी शामिल है. सतलुज पर नाथपा झकरी जैसे बड़े जलविद्युत संयंत्रों में गाद भरने से टर्बाइन बंद करनी पड़ी हैं.

उधर, शिमला और कुल्लू के सेब के बाग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. हिमाचल के अधिकारियों का अनुमान है कि 10,000 हेक्टेयर से ज्यादा बागवानी जमीन बर्बाद हो गई है, जिससे किसानों की आय को कम से कम दो सीजन पीछे चली गई है. 31 अगस्त तक हिमाचल में 220 से अधिक लोगों की मौत और 12,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति का नुकसान का अनुमान लगाया गया है.

राजौरी-पूंछ में टूटे पुल

जम्मू में चिनाब और झेलम नदियों का जलस्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच गया. राजौरी और पूंछ में पुल टूट गए, जिससे कई गांव अलग-थलग पड़ गए. श्रीनगर में लोग 2014 की बाढ़ की यादों के साथ झेलम के खतरे के निशान तक पहुंचने की आशंका से डरे रहे. हालांकि. इस बार तटबंध टिके रहे, फिर भी हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाना पड़ा. जम्मू-कश्मीर में 40,000 घर और 90,000 हेक्टेयर धान की फसलें बर्बाद हो गई हैं. शुरुआती सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य को 6,500 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान का अनुमान है.

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