ज़हरीली गैस बनी काल सीवर लाइन की सफाई कर रहे मज़दूरों की गयी जान, परिवार में मचा कोहराम।

भास्कर न्यूज़ उत्तर प्रदेश उत्तराखंड।

प्रशासन नहीं करता सफाई उपकरणों की व्यवस्था, राज्यों को सुप्रीम कोर्ट दे चुका निर्देश, नहीं होता पालन

पर्याप्त व्यवस्था न होने से स्वच्छकारों की ज़िंदगी खतरे में, सिस्टम मौन

मुज़फ्फरनगर। सोमवार शाम को नगर कोतवाली क्षेत्र के किदवईनगर में एटूजेड रोड़ स्थित कूड़ा फेक्ट्री के समीप सीवर लाइन (गटर) की साफ सफाई कर रहे 2 मज़दूरों की ज़हरीली गैस से दम घुटने से मौत हो गई। बिना किसी साधन या व्यवस्था के गटर के अंदर घुसे दो मज़दूर गटर में मौजूद ज़हरीली गैस त्रासदी का शिकार हो गए। जैसे ही उनको सांस लेने में तकलीफ हुई तो वह जैसे तैसे करके सीवर लाइन से बाहर निकल सके लेकिन ज़हरीली गैस के कारण दोनों मज़दूर सड़क किनारे तड़पते रहे स्थानीय लोगों ने एंबुलेंस बुलाई लेकिन ज़िंदगी और मौत के बीच हुई जंग में मज़दूर तड़प तड़प कर ज़िंदगी की जंग हार गए। जैसे ही परिजनों को हादसे की जानकारी हुई तो पूरे इलाके में कोहराम मच गया। मृत मज़दूरों की पहचान शमीम व वासित के रूप में हुई है। दोनों मृतक किदवईनगर व खालापार इलाके के निवासी थे। मौके पर पहुंची नगर कोतवाली पुलिस ने स्थिति संभाली और मज़दूरों को अस्पताल पहुंचाया जहाँ चिकित्सकों ने दोनों मज़दूरों की मौत की पुष्टि की। यह पहला मामला नहीं है जहाँ सीवर लाइन की ज़हरीली गैस से किसी मज़दूर की मौत हुई हो। देश में हर साल हजारों मज़दूरों की मौत सीवर लाइन में मौजूद ज़हरीली गैस के कारण होती है लेकिन गरीब मज़दूरों की ज़िंदगी मुआवजे मात्र तक ही सीमित रह जाती है। इस मामले में अधिकारियों का कहना है कि यदि मजदूरों से काम करवाने वाली कंपनी की लापरवाही सामने आती है तो कंपनी के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी। ज्ञात हो कि मृतक दोनों मजदूर बिना किसी सुरक्षा उपकरण के सीवर लाइन में उतरे थे जिससे साफ साफ प्रतीत होता है कि कंपनी की बड़ी लापरवाही से दोनों मजदूरों की जान गई है। मौके पर पहुंचे स्थानीय वार्ड सभासद अन्नू कुरैशी ने कहा कि क्षेत्र में बने कूड़ा प्लांट से पूरे इलाके को जहरीली गैस एवं बीमारियों से जूझना पड़ता है। पूरे जिले का कूड़ा इसी कूड़ा प्लांट पर डाला जाता है। जिससे इस क्षेत्र में आये दिन हादसे होते रहते हैं। ऐसे में नगर पालिका के सफाई कर्मियों के लिए उपलब्ध सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे है। सीवर लाइन में मैनुअल काम करने उतरने वाले सीवर मजदूर जहरीली गैस की चपेट में आने से दम तोड़ देते हैं। देश में हर साल ऐसे हज़ारों मजदूर सीवर में जहरीली गैस की चपेट में आते हैं। इसको लेकर कानून भी बने लेकिन फिर भी हरसाल मौत होती हैं और यह आंकड़ा बढ़ता जा रहा है।

 

*कानून का पालन नहीं होता*

 

मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास (पीईएमएसआर) अधिनियम, 2013 के तहत हाथ से मैला ढोना प्रतिबंधित है। ये अधिनियम किसी भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार से मानव मल की हाथ से सफाई, मैला ले जाना, उसका निपटान करना या उसको संभालने पर प्रतिबंध लगाता है। इसके बावजूद भी बड़ी संख्या में लोग इस काम को कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में दिल्ली में सरकार को सफाई कर्मी की सीवर में मौत पर 10 लाख की जगह 30 लाख का मुआवजा देने के लिए कहा था। वहीं इसके पहले कोर्ट सभी राज्यों को सीवर की सफाई के लिए मैनुअल काम की जगह आधुनिक उपकरणों और मशीनों का सहारा लेने के लिए निर्देश दे चुका है। लेकिन नगर प्रशासन इस संबंध में उपकरण नहीं उपलब्ध कराती हैं। वहीं शासन भी इस ओर ध्यान नहीं देता है। यदि नगर पालिका या प्राइवेट कंपनी सभी आधुनिक उपकरणों द्वारा सीवर लाइन की सफाई करवाएं तो इस प्रकार के दुखद हादसों से छुटकारा मिल सकता है।

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